“ना बारात थी, ना शादी… फिर भी गांव में बजे बैंड-बाजे! पीछे की कहानी आपको छू जाएगी”

जनपद सदस्य हरीश उईके के नेतृत्व में आयोजित इस विदाई समारोह में न केवल स्कूल का स्टाफ बल्कि पूरा गांव उमड़ पड़ा। फूलों की मालाओं से लदे मेघराज पराड़कर जब सजे हुए रथ पर सवार हुए तो बैंड की धुन पर ग्रामीण और छात्र-छात्राएं झूम उठे। रथ के आगे नाचते हुए लोगों ने अपने प्रिय गुरुजी को अश्रुपूर्ण विदाई दी।

गांव में यह पहला मौका था जब किसी शिक्षक के सेवानिवृत्त होने पर इतनी भव्य विदाई का आयोजन किया गया। पूरा माहौल विवाह समारोह जैसा था – रथ फूलों से सजा हुआ, बैंड की गूंज, और लोगों के चेहरों पर सम्मान और भावनाओं का मिश्रण।
शिक्षक मेघराज पराड़कर की पहली पोस्टिंग 1 अक्टूबर 1987 को इसी धोबीवाड़ा प्राथमिक विद्यालय में हुई थी। उन्होंने 38 वर्ष 10 माह तक लगातार इसी स्कूल में सेवाएं दीं और पूरी नौकरी इसी गांव के बच्चों को शिक्षित करने में समर्पित की।
कार्यक्रम में उपस्थित जनप्रतिनिधि, ग्रामीण और विद्यार्थियों ने उनके समर्पण और सेवाभाव की सराहना की।
समारोह के दौरान भावुक होते हुए पराड़कर सर ने कहा —
“मुझे बहुत खुशी है कि आज इतने लोग यहां आए हैं। कभी 26 जनवरी और 15 अगस्त पर भी इतनी भीड़ नहीं होती। मैं गांव के माता-पिता से निवेदन करता हूं कि अपने बच्चों को नियमित स्कूल भेजें। बच्चों की उपस्थिति ही हमारे गांव के उज्जवल भविष्य की कुंजी है।”
धोबीवाड़ा गांव में यह विदाई समारोह लंबे समय तक याद रखा जाएगा — एक ऐसे शिक्षक के सम्मान में जिसने अपने जीवन के चार दशक गांव की शिक्षा के नाम समर्पित कर दिए।



