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“नवरात्री विशेष: छिंदवाड़ा की श्री बड़ी माता मंदिर में आस्था और संस्कृति का संगम”

छिन्दवाड़ा: छिंदवाड़ा शहर की छोटी बाजार में स्थित श्री बड़ी माता मंदिर न केवल शहर बल्कि पूरे जिले की धार्मिक आस्था और चेतना का केंद्र बिंदु है। कहा जाता है कि इस मंदिर का इतिहास छिंदवाड़ा शहर के बसने जितना ही पुराना है। शहर की स्थापना के समय ही यहां माता की मढ़िया के रूप में श्री बड़ी माता मंदिर का अस्तित्व माता के चमत्कारों के साथ स्थापित हो चुका था। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि यह स्थल स्वयं सिद्ध है और यहां आने वाला हर भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण होते हुए देखता है।
इतिहास से जुड़ी मान्यताएं
माना जाता है कि छिंदवाड़ा शहर की बसाहट सोलहवीं शताब्दी में शुरू हुई थी। उस समय देवगढ़ के गौवली राजाओं को हाथी, घोड़ा, ऊंट और शस्त्रों की आपूर्ति के लिए देश के उत्तरी क्षेत्रों से लोग यहां आकर बसने लगे थे। इन्हीं प्रवासियों के साथ शहर का आकार लेना शुरू हुआ।
स्थानीय लोगो के अनुसार छिंदवाड़ा के सबसे पुराने मोहल्ले के रूप में रघुवंशीपुरा को जाना जाता है, जो आज का छोटी बाजार क्षेत्र ही है। यही क्षेत्र श्री बड़ी माता मंदिर का स्थान है। स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार, मंदिर का स्थल पहले खुले आसमान के नीचे स्थित था, जहां प्राकृतिक रूप से सफेद पत्थरों का एक बड़ा समूह था। इन पत्थरों पर देवी की आकृतियां स्वयं उभरी हुई थीं, जिन्हें माता का स्वरूप मानकर पूजा-अर्चना शुरू हुई। बाद में श्रद्धालुओं ने नगर रक्षा देवी के रूप में माता को स्थापित कर उनकी आराधना प्रारंभ की और उन्हें श्री बड़ी माता का नाम दिया। 1861 में जब ब्रिटिश शासन ने जिले की सीमा का निर्धारण किया, तब श्री बड़ी माता मंदिर का क्षेत्र ही शहर का केंद्र बिंदु था। तब से लेकर आज तक मंदिर छिंदवाड़ा शहर के विकास और सांस्कृतिक गतिविधियों का साक्षी बना हुआ है।
चमत्कार और आस्था का प्रतीक
मान्यता है कि करीब एक सदी पहले जब छिंदवाड़ा में हैजा और प्लेग जैसी महामारी फैली थी, तब श्री बड़ी माता के प्रताप से ही शहर इस संकट से बचा। उस कठिन समय में हजारों लोगों की जान माता के आशीर्वाद से सुरक्षित रही, जिसके बाद माता के प्रति लोगों की आस्था और अधिक गहरी हो गई। इसी आस्था के परिणामस्वरूप मढ़िया को मंदिर का स्वरूप दिया गया और शहर के सुनारों ने माता की अष्टधातु की भव्य प्रतिमा निर्मित की। मंदिर में माता शीतला और माता अन्नपूर्णा की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु बड़ी माता के दर्शन कर न केवल मानसिक शांति पाते हैं बल्कि अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर माता के दरबार में आकर आभार प्रकट करते हैं।
विस्तार के नए आयाम
समय के साथ श्री बड़ी माता मंदिर का भी विस्तार होता गया। वर्तमान में श्री बड़ी माता मंदिर ट्रस्ट मंदिर की व्यवस्था संभालता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार ट्रस्ट ने मंदिर से सटी मिशन स्कूल की संपत्ति लगभग 2 करोड़ रुपये में खरीदी है। अब करीब 15 करोड़ रुपये की लागत से मंदिर के नवनिर्माण की योजना है। यह निर्माण भक्तों द्वारा दिए गए अंशदान से किया जा रहा है, जिससे भविष्य में यह मंदिर भव्यता और दिव्यता का नया केंद्र बिंदु बनेगा।
विशेष पर्व और आयोजन
श्री बड़ी माता मंदिर में नवरात्र पर्व विशेष रूप से भव्यता के साथ मनाया जाता है। साल में दो बार आयोजित होने वाले इस पर्व के दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु मनोकामना कलश रखते हैं। शारदीय नवरात्र के समापन पर रथ पर सजी माता की शोभायात्रा एवं कलश विसर्जन यात्रा का भव्य आयोजन होता है, जिसमें श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। चैत्र नवरात्र में भी श्रद्धालु बड़ी संख्या में माता के दरबार में मनोकामना कलश अर्पित करते हैं। नवरात्र के नौ दिनों तक मंदिर में अखंड ज्योत प्रज्जवलित रहती है और प्रतिदिन सुबह-शाम होने वाली आरती में बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं।
इसके अलावा भुजलिया उत्सव तो अपनी विशिष्ट परंपरा के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। मंदिर में गणेश उत्सव, तीजा उत्सव और आल्हा गायन का भी विशेष महत्व है, जो यहां की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है।
भव्यता का प्रतीक बनेगा मंदिर
भक्तों की आस्था के कारण श्री बड़ी माता मंदिर के नवनिर्माण कार्य को गति मिली है। भक्तों के एक-एक रुपये के सहयोग से लगभग 15 करोड़ रुपये की लागत से मंदिर का भव्य निर्माण कार्य जारी है। यह नवनिर्मित मंदिर भविष्य में श्रद्धा, भक्ति और दिव्यता का केंद्र बनकर छिंदवाड़ा की पहचान को और समृद्ध करेगा।