इजराइल के वैज्ञानिक पांढुर्णा और छिंदवाड़ा के किसानों को संतरे की खेती करने के तरीके बताएंगे

पांढुर्णा
पांढुर्णा और छिंदवाड़ा के किसानों को इजरायली तकनीक से खेती करने के तरीके सिखाए जाएंगे ताकि किसान मालामाल हो सके. सौंसर के शासकीय संजय निकुंज कुडड्म में निर्माणाधीन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर सिट्रस यानी नींबू वर्गीय पौधों का उत्कृष्ट केन्द्र बन रहा है. यहां इजराइल के वैज्ञानिक किसानों को संतरे की खेती करने के तरीके बताएंगे. इजराइली एम्बेसी के विशेषज्ञ उरी रूबीस्टेन ने यहां का जायजा लिया.
कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों से की चर्चा
निर्माणाधीन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर सिट्रस में इजराइली एम्बेसी विशेषज्ञ उरी रूबीस्टेन ने निर्देश दिए कि सेन्टर पर रोपित होने वाले सभी पौधों का रोपण रिज बेड पद्धति से किया जाए. साथ ही पौधारोपण के पहले बेड पर वीड मैट बिछाने के बाद डबल ड्रिप लाइन स्थापित की जाए. जिन किसानों ने रिज बेड पद्धति से संतरा/मौसम्बी पौधों का रोपण किया है, उनकी जानकारी एकत्रित कर डाटाबेस तैयार करने की बात कही.
किसानों को टिप्स देने के लिए मौजूद रहेगा टेक्निकल अमला, इजराइल से आएंगे वैज्ञानिक
कृषि उपसंचालक जितेंद्र कुमार सिंह ने बताया "सेंटर शुरू होने से पहले सेंटर एक्सपर्ट अमले की नियुक्ति स्थाई रूप से की जाएगी. जिसमें नर्सरी एक्सपर्ट, फार्म मैनेजर, प्लांट प्रोटेक्शन एक्सपर्ट, अर्चड मैनेजर, वॉटर एक्सपर्ट, तकनीकी प्रशिक्षण विशेषज्ञ व प्रोटेक्टेड फार्मिंग एक्सपर्ट होंगे. साथ ही समय-समय पर इजरायल के कृषि वैज्ञानिक किसानों को खेती करने के लिए यहां आकर टिप्स भी देंगे."
क्या होती है रिड्जबेड पद्धति
उपसंचालक कृषि जितेंद्र कुमार सिंह ने बताया "खेतों में पर्याप्त नमी रखने के लिए रिज बेड विधि का उपयोग किया जाता है. इस तकनीक में बुवाई फैरो इरीगेटेड रिज बेड प्लांटर से की जाती है. इसमें प्रत्येक दो कतारों के बाद 25 से 30 सेमी चौड़ी और 15 से 20 सेमी गहरी नाली या कूड़ बनाई जाती है. जिससे फसल की कतारें उभरे हुए बेड पर आ जाती हैं. रबी के मौसम में यह नाली सिंचाई के काम आती है, जिससे नमी अधिक समय तक बनी रहती है. साथ ही मेढ़ से मेढ़ की पर्याप्त दूरी होने के कारण पौधों को सूर्य की किरणें अधिक मात्रा में मिलती हैं."
डेमो प्लांट किया जाएगा विकसित
वैज्ञानिक ने यहाँ पर एक डेमो प्लांट लगाने की सलाह दी है जिसमें सभी नए किस्मों के पौधों का रोपण रिज बेड पद्धति से किया जाएगा. पौधे तैयार करने के लिए लगने वाली रोपण सामग्री के रूप में कोकोपिट एवं परलाइट, गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट खाद का प्रयोग ना करके पौधारोपण के पहले पौधारोपण स्थल की मिट्टी का उपचार किया जाएगा. पौधों को मिट्टी जनित रोगों से बचाया जा सकेगा. रोपण से पहले प्राप्त होने वाले मातृ पौधों की किस्म की जाँच एवं पौधों पर किसी भी प्रकार के वायरस/ रोग न हो इस बात की पुष्टि करने के बाद किसानों को दिए जाएंगे.
रूट स्टॉक से तैयार होते हैं संतरे के पौधे
संतरे के पौधे तैयार करने की एक अलग तकनीक होती है जिसमें ज्यादा सहनशीलता वाले नींबू के तने को लिया जाता है. उसमें अच्छी उपज और वैरायटी वाले संतरे की स्वस्थ टहनी को काटकर ग्राफ्टिंग कर दी जाती है. करीब 60 दिनों तक ग्राफ्टिंग के बाद टहनी उसमें लग जाती है और ज्यादा उपज देने वाला संतरे का पौधा तैयार हो जाता है. फिर खेत में गहरे गड्ढे खोदकर इसे रोपित किया जाता है. इसे रूट स्टॉक से तैयार पौधा कहा जाता है.
साढ़े 4 लाख टन उत्पादन विदेश में खपत
कृषि उपसंचालक जितेंद्र कुमार सिंह ने बताया "छिंदवाड़ा, पांढुर्ना, सौसर, बिछुआ और दूसरे ब्लॉक में करीब 25 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में उगाए जाते हैं. इस क्षेत्र में लगभग 4.5 लाख टन संतरे का उत्पादन होता है. देश के दूसरे राज्यों के अलावा नेपाल और बांग्लादेश में संतरे की सप्लाई की जाती है."
इंडो इजराईल प्रोजेक्ट के तहत बन रहा है सेंटर
2022 में इजराइल एवं भारत के द्विपक्षीय संबंध को 30 साल पूरे होने पर दोनों देशों ने कृषि सहयोग एवं जल प्रबंधन को लेकर कई नवाचार किया था. इसी के तहत मार्च 2022 मे प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और इजराइल के काउंसिल जनरल के बीच हुई भेंट के बाद इजराइली कृषि व बागवानी विशेषज्ञ यायर ऐशेल ने पहली प्रदेश यात्रा की थी. जिसके चलते इजराईली दल के सामने 50 एकड़ में इंडो-इजराइल प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई थी.