यदि गरीब लोगों का अस्पताल में मुफ्त इलाज उपलब्ध नहीं किया तो वह एम्स को अपने नियंत्रण में लेने को कहेगा: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि गरीब लोगों का इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में मुफ्त इलाज उपलब्ध नहीं किया जाएगा तो वह अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को इसे अपने नियंत्रण में लेने को कहेगा। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने सीज समझौते के कथित उल्लंघन को गंभीरता से लिया, जिसके तहत अस्पताल को अपने यहां एक तिहाई गरीब मरीजों को भर्ती करना था और ओपीडी में 40 प्रतिशत मरीजों को बिना किसी भेदभाव मुफ्त इलाज करना था।
बेंच ने कहा, 'अगर हमें पता चला कि गरीब लोगों को मुफ्त इलाज नहीं दिया जा रहा है तो हम अस्पताल को एम्स को सौंप देंगे।' बेंच ने कहा कि अपोलो समूह की ओर से दिल्ली के पॉश इलाके में 15 एकड़ भूमि पर बनाए गए अस्पताल के लिए एक रुपये के प्रतीकात्मक पट्टे पर यह जमीन दी गई थी और उसे 'बिना लाभ और बिना हानि' के फॉर्मूले पर चलाया जाना था, लेकिन यह एक शुद्ध वाणिज्यिक उद्यम बन गया है, जहां गरीब लोग मुश्किल से इलाज करा पाते हैं।
आईएमसीएल की ओर से पेश वकील ने कहा कि अस्पताल एक संयुक्त उद्यम के रूप में चलाया जा रहा है और दिल्ली सरकार की इसमें 26 प्रतिशत हिस्सेदारी है। उसे भी कमाई से बराबर का फायदा हुआ है। जस्टिस सूर्यकांत ने वकील से कहा, 'अगर दिल्ली सरकार गरीब मरीजों की देखभाल करने के बजाय अस्पताल से मुनाफा कमा रही है, तो यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात है।'
पीठ ने कहा कि अस्पताल को 30 साल के लिए पट्टे पर जमीन दी गई थी और इस पट्टे की अवधि 2023 में समाप्त होनी थी । सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार से यह पता लगाने को कहा कि इसका लीज रिन्यू किया गया है या नहीं। शीर्ष अदालत आईएमसीएल की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट के 22 सितंबर, 2009 के आदेश को चुनौती दी गई थी।
हाई कोर्ट ने कहा था कि अस्पताल प्रशासन ने अंदरूनी (इनडोर-भर्ती) और बाह्य (आउटडोर) गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज देने के समझौते की शर्त का उल्लंघन किया है। शीर्ष अदालत ने केंद्र और दिल्ली सरकार से पूछा कि अगर पट्टा समझौता नहीं बढ़ाया गया है तो उक्त जमीन के संबंध में क्या कानूनी कवायद की गई है। पीठ ने अस्पताल में मौजूदा कुल बिस्तरों की संख्या भी पूछी तथा पिछले पांच वर्षों के ओपीडी मरीजों का रिकॉर्ड मांगा।