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कूटनीति में बड़ा धमाका! इजरायल से मिलने पहुँचे पाक आर्मी चीफ आसिम मुनीर, जानिए पूरी अंदरूनी कहानी

नई दिल्ली 
पाकिस्तान में इजरायल का नाम लेना भी गुनाह माना जाता है। कोई भी पाकिस्तानी इजरायल नहीं जा सकता है। इजरायल को पाकिस्तान की ओर से एक मुल्क के तौर पर मान्यता ही नहीं है, लेकिन खुद पाकिस्तान अपनी नीति से पलटता दिख रहा है। पाकिस्तान के फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद के अधिकारियों से मुलाकात की है। इस मीटिंग में अमेरिकी एजेंसी सीआईए के अधिकारी भी मौजूद थे। इस मीटिंग में इजरायल ने पाकिस्तान की ओर से गाजा में अपने 20 हजार सैनिक भेजने पर सहमति जताई है। यह सैनिक इंटरनेशनल स्टैबिलाइजेशन फोर्स का हिस्सा होंगे।

इस फोर्स में मिस्र, अजरबैजान, तुर्की जैसे कई अन्य मुसलमान देशों के सैनिक भी शामिल होंगे। खबर मिली है कि मिस्र में एक गुप्त मीटिंग हुई थी, जिसमें आसिम मुनीर की मुलाकात मोसाद के कई सीनियर अधिकारियों से हुई। पाकिस्तान के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब उसने इजरायल से बात की है। इस मीटिंग में अमेरिकी एजेंसी के लोग भी बैठे थे। यह अहम है क्योंकि पाकिस्तान कभी इजरायल को मान्यता नहीं देता। कहा जा रहा है कि पाकिस्तान के सामने इजरायल ने कुछ चीजें स्पष्ट भी कर दी हैं। जैसे नेतन्याहू प्रशासन ने साफ किया है कि पाकिस्तान की सेना गाजा में सिर्फ शांति व्यवस्था कायम करेगी। वहां किसी तरह के संघर्ष आदि में हिस्सा नहीं लेगी।

इसके अलावा हमास से हथियार वापस लेने की जिम्मेदारी भी पाकिस्तान समेत कई मुसलमान देशों के सुरक्षा बलों की रहेगी। इस योजना में पाकिस्तान, इंडोनेशिया और अज़रबैजान के साथ मिलकर काम कर रहा है, जिन्हें पश्चिमी और अरब देशों के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल किया जा रहा है। सूत्रों से पता चलता है कि इस समझौते की शर्तों के तहत पाकिस्तानी सैनिक इज़रायल और गाजा के शेष उग्रवादी गुटों के बीच एक बफर बल के रूप में कार्य करेंगे, पुनर्निर्माण और संस्थागत पुनर्गठन को सुगम बनाते हुए एक सुरक्षा कवच प्रदान करेंगे।

खुफिया सूत्रों ने आगे खुलासा किया कि पाकिस्तान के सहयोग को अस्थायी राजनयिक राहत के साथ 'चुपचाप पुरस्कृत' भी किया जा रहा है। इसमें नियंत्रण रेखा पर भारतीय सैन्य दबाव में कमी और पाकिस्तान की चल रही घरेलू कार्रवाई और खुफिया ज्यादतियों पर पश्चिमी मानवाधिकार निकायों की मौन आलोचना शामिल है। एक सूत्र ने इसे 'एक अस्तित्व-रक्षा सौदा – पश्चिमी सुरक्षा सेवा के बदले में आर्थिक राहत और वैश्विक वैधता' बताया।

 

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