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रावण को जलाया नहीं,पूजा जाता हैं: छिंदवाड़ा के इस गांव की अनोखी परंपरा

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के जमुनिया गांव में एक अनूठी परंपरा देखने को मिलती है। यहां बीते करीब दो दशकों से रावण का दहन नहीं, बल्कि उसकी प्रतिष्ठा और पूजा की जा रही है ।
गांव के आदिवासी समाज, रावण को अपना पूर्वज और प्रकृति का संरक्षक मानता है। रावण की दस दिनों तक प्रतिमा स्थापित का विधि विधान के साथ पूजा की जाती है और दशहरा के दिन रावण की प्रतिमा विसर्जित की जाती है ।
गांव के बुजुर्ग केवलराम परतेती पंडा बताते हैं कि रावण केवल एक पौराणिक पात्र नहीं, बल्कि प्रकृति के पंचतत्वों — अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश — का उपासक था।
“हमारे समाज की मूल मान्यता प्रकृति पूजा में निहित है और रावण भी इन्हीं सिद्धांतों का पालन करता था। वह रक्ष संस्कृति का प्रतीक था, इसलिए हम उसे सम्मानपूर्वक पूजते हैं,”
उन्होंने बताया कि पहले यह पूजा घर के भीतर ही सीमित रहती थी, लेकिन अब इसे सार्वजनिक रूप से किया जाने लगा है। इसके पीछे उद्देश्य है समाज में रावण दहन के विरोध को सामने लाना और रावण के प्रति सम्मान को स्थापित करना।
“हमने प्रशासन से अनुरोध किया है कि रावण दहन पर विचार किया जाए। हमारे गांव में बीते 20 वर्षों से दहन नहीं किया जाता, और हम अन्य समुदायों से भी यही अपेक्षा रखते हैं,”
गांव के लोग देवी मां की पूजा भी नवरात्रि में पूरी श्रद्धा से करते हैं। यह परंपरा दर्शाती है कि यहां एक साथ कई आस्थाएं और विश्वास समान रूप से जीवित हैं — एक ओर देवी आराधना, तो दूसरी ओर रावण का सम्मान।
जमुनिया गांव की यह परंपरा आदिवासी संस्कृति की जड़ों से जुड़ी हुई है और समाज में प्रकृति संरक्षण, सांस्कृतिक, धार्मिक मान्यताओं का सशक्त उदाहरण पेश करती है।
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