देश

भारत 2050 तक बन जाएगा दुनिया का सबसे अधिक मुस्लिम जनसंख्या वाला देश? रिपोर्ट में हुआ खुलासा

नई दिल्ली

साल 2010 से 2020 के बीच मुस्लिम समुदाय दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला धार्मिक समूह बनकर उभरा है, जबकि ईसाई धर्म की वैश्विक जनसंख्या में हिस्सेदारी में गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि गिरावट के बावजूद ईसाई धर्म अभी भी दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समूह हैं। प्यू रिसर्च सेंटर की एक ताजा रिपोर्ट '2010 से 2020 तक वैश्विक धार्मिक परिदृश्य कैसे बदला' में ये आंकड़े सामने आए हैं। इसमें ये भी कहा गया है कि अगले 25 सालों में भारत ऐसा देशा होगा जहां दुनिया के सबसे ज्यादा मुसलमान होंगे।
मुस्लिम आबादी में रिकॉर्ड वृद्धि

रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिम आबादी में 34.7 करोड़ की वृद्धि हुई, जो अन्य सभी धर्मों की संयुक्त वृद्धि से अधिक है। वैश्विक स्तर पर मुस्लिमों की हिस्सेदारी 2010 में 23.9% से बढ़कर 2020 में 25.6% हो गई। यह वृद्धि मुख्य रूप से जनसांख्यिकीय कारकों जैसे उच्च जन्म दर और युवा आबादी के कारण हुई। प्यू के वरिष्ठ जनसांख्यिकी विशेषज्ञ कॉनराड हैकेट ने बताया, "मुस्लिमों में बच्चों का जन्म मृत्यु दर से अधिक है, और उनकी औसत आयु (24 वर्ष) गैर-मुस्लिमों (33 वर्ष) की तुलना में कम है।" इसके अलावा, धर्म परिवर्तन का इस वृद्धि में बहुत कम योगदान है।

मुस्लिम आबादी का सबसे अधिक विकास एशिया-प्रशांत क्षेत्र में देखा गया, जहां विश्व की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी निवास करती है। इस क्षेत्र में 2010 से 2020 के बीच मुस्लिम आबादी में 16.2% की वृद्धि हुई। मध्य पूर्व-उत्तर अफ्रीका क्षेत्र में मुस्लिम 94.2% आबादी का हिस्सा हैं, जबकि उप-सहारा अफ्रीका में यह 33% है।
हिंदुओं की क्या है स्थित?

रिपोर्ट में बताया गया कि हिंदू आबादी 2010 से 2020 के बीच 12% बढ़ी, जो वैश्विक जनसंख्या वृद्धि के लगभग बराबर है। 2020 में हिंदुओं की संख्या 1.2 अरब थी, जो वैश्विक आबादी का 14.9% है। भारत में हिंदू आबादी 2010 में 80% से थोड़ा घटकर 2020 में 79% रह गई, जबकि मुस्लिम आबादी 14.3% से बढ़कर 15.2% हो गई। भारत में मुस्लिम आबादी में 3.56 करोड़ की वृद्धि दर्ज की गई। रिपोर्ट में बताया गया कि हिंदू धर्म में धर्म-परिवर्तन की दर अत्यंत कम है, और इनका प्रजनन दर वैश्विक औसत के बराबर है- इसी कारण इनकी हिस्सेदारी स्थिर बनी हुई है।

प्यू की रिपोर्ट के अनुसार, हिंदू और यहूदी आबादी ने वैश्विक जनसंख्या वृद्धि के साथ तालमेल बनाए रखा। भारत, नेपाल और मॉरीशस में हिंदू सबसे बड़ा धार्मिक समूह हैं। हालांकि, भारत में हिंदुओं की हिस्सेदारी में मामूली कमी आई है, लेकिन यह अभी भी देश की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा है।

तेजी से बढ़ रही है जनसंख्या 

भारत में मुसलमानों की जनसंख्या हिंदुओं की तुलना में तेजी से बढ़ने की संभावना है, जिसका मुख्य कारण उनकी कम औसत आयु और उच्च प्रजनन दर है. 2010 में, भारतीय मुसलमानों की औसत आयु 22 वर्ष थी, जबकि हिंदुओं की 26 वर्ष और ईसाइयों की 28 वर्ष थी. इसी तरह प्रति मुस्लिम महिला औसतन 3.2 बच्चे होते हैं, जबकि हिंदू महिलाओं में यह आंकड़ा 2.5 और ईसाई महिलाओं में 2.3 है.

इन्हीं कारकों के कारण भारत में मुस्लिम आबादी 2010 में 14.4% से बढ़कर 2050 तक 18.4% तक पहुंचने का अनुमान है. हालांकि, 2050 तक हिंदुओं की संख्या भारतीय जनसंख्या का तीन-चौथाई (76.7%) से अधिक बनी रहेगी. दिलचस्प बात यह है कि 2050 में भारत में हिंदुओं की संख्या दुनिया के पांच सबसे बड़े मुस्लिम देशों (भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, नाइजीरिया और बांग्लादेश) की कुल मुस्लिम आबादी से भी अधिक होगी.

जानें कितनी होगी ईसाइयों की संख्या

भारत में कई छोटे धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय भी हैं. 2010 में, देश की कुल जनसंख्या का लगभग 2.5% ईसाई थे. 2050 तक भारत में ईसाइयों की जनसंख्या घटकर 2.2% रहने की संभावना है. हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में धार्मिक विविधता बनी रहेगी, और सभी समुदायों की उपस्थिति देश की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत बनाए रखेगी.

ईसाई धर्म में कमी, 'नास्तिक' बढ़े

विश्व में ईसाइयों की संख्या 2.18 अरब से बढ़कर 2.3 अरब हो गई, लेकिन उनकी वैश्विक हिस्सेदारी 30.6% से घटकर 28.8% रह गई। यह कमी मुख्य रूप से धार्मिक परित्याग के कारण हुई, खासकर यूरोप, उत्तरी अमेरिका, और ऑस्ट्रेलिया जैसे क्षेत्रों में। हैकेट के अनुसार, "प्रत्येक व्यक्ति जो वयस्क होने पर ईसाई बनता है, उसके मुकाबले तीन लोग, जो ईसाई धर्म में पले-बढ़े, इसे छोड़ देते हैं।"

इसके विपरीत, धार्मिक रूप से असंबद्ध या 'नास्तिक' लोगों की संख्या 27 करोड़ बढ़कर 1.9 अरब हो गई, जो वैश्विक आबादी का 24.2% है। यह समूह मुस्लिमों के बाद दूसरा सबसे तेजी से बढ़ने वाला समूह है। विशेष रूप से, एशिया-प्रशांत क्षेत्र, खासकर चीन, में 78.3% 'नास्तिक' आबादी रहती है।
बौद्ध धर्म की गिरावट

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि प्रमुख धार्मिक समूहों में बौद्धों की संख्या ही ऐसी थी जिसमें गिरावट दर्ज की गई। इसका कारण चीन में जनसंख्या की वृद्धावस्था और जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट को माना गया है, जहां बौद्धों की संख्या सर्वाधिक है।
ईसाई क्यों हुए कम?

ईसाइयों की वैश्विक जनसंख्या हिस्सेदारी में गिरावट का मुख्य कारण "धर्म-परित्याग" बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, बड़ी संख्या में ईसाई धर्म को छोड़ रहे हैं, खासकर यूरोप और अमेरिका जैसे क्षेत्रों में। यह गिरावट इतनी व्यापक है कि यह ईसाइयों की उच्च प्रजनन दर के लाभ को भी पछाड़ देती है।
धर्म-परिवर्तन के मामले में हिंदू और मुस्लिम सबसे स्थिर

Pew की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि धर्म-परिवर्तन की दृष्टि से हिंदू और मुस्लिम समुदाय सबसे स्थिर हैं। औसतन 100 में से केवल एक वयस्क ही ऐसा होता है जो मुस्लिम या हिंदू धर्म छोड़ता है या इनमें शामिल होता है।
भविष्य की संभावनाएं

प्यू रिसर्च के अनुसार, यदि वर्तमान जनसांख्यिकीय रुझान जारी रहे, तो 2050 तक मुस्लिम आबादी (2.8 अरब) और ईसाई आबादी (2.9 अरब) लगभग बराबर हो सकती है। भारत 2050 तक विश्व की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश बन सकता है, जो इंडोनेशिया को पीछे छोड़ देगा। हिंदू आबादी के 1.4 अरब तक पहुंचने का अनुमान है, जो वैश्विक आबादी का लगभग 14.9% होगा।
क्यों बढ़ रही है मुस्लिम आबादी?

मुस्लिम समुदाय में तेजी से जनसंख्या वृद्धि का कारण उनकी औसतन युवा आबादी और उच्च प्रजनन दर है। 2010 में दुनिया के कुल मुस्लिमों में से 35% की उम्र 15 साल से कम थी। यह किसी भी अन्य धार्मिक समूह की तुलना में सर्वाधिक था। इसके बाद हिंदू आते हैं, जिनमें 31% बच्चे 15 वर्ष से कम आयु के थे। मुस्लिम आबादी की वृद्धि का मुख्य कारण उनकी युवा जनसांख्यिकी और उच्च प्रजनन दर है। 2015-2020 के आंकड़ों के आधार पर, एक मुस्लिम महिला औसतन 2.9 बच्चे पैदा करती है, जबकि गैर-मुस्लिम महिला के लिए यह आंकड़ा 2.2 है। इसके अलावा, मुस्लिम आबादी का एक तिहाई हिस्सा 15 वर्ष से कम आयु का है, जो भविष्य में और वृद्धि की संभावना को दर्शाता है।

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button