भारत के पास होंगे नए हाईटेक डिफेंस सैटेलाइट्स, तैयारियों में ISRO और प्राइवेट कंपनियां

नई दिल्ली
ऑपरेशन सिंदूर के बाद दुश्मन के इलाके पर लगातार नजर रखने की जरूरत महसूस की जा रही है। इसलिए, भारत अपनी सेना के लिए 52 नए सैटेलाइट (डिफेंस सर्विलांस सैटेलाइट) जल्दी ही लॉन्च करने की योजना बना रहा है। साथ ही एक मजबूत मिलिट्री स्पेस डॉक्ट्रिन ( अंतरिक्ष में युद्ध के नियम) भी तैयार कर रहा है। पिछले साल अक्टूबर में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ने स्पेस-बेस्ड सर्विलांस (SBS) प्रोग्राम के तीसरे चरण को मंजूरी दी थी। इस पर 26,968 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। इसके तहत, इसरो (ISRO) 21 सैटेलाइट बनाएगा और तीन प्राइवेट कंपनियां 31 सैटेलाइट बनाएंगी।
2026 अप्रैल तक पहला डिफेंस सर्विलांस सैटेलाइट लॉन्च होगा
इनमें से पहला डिफेंस सर्विलांस सैटेलाइट 2026 के अप्रैल तक लॉन्च हो जाएगा। 2029 के अंत तक सभी 52 सैटेलाइट लॉन्च करने की योजना है। यह प्रोजेक्ट डिफेंस स्पेस एजेंसी (DSA) की अगुवाई में चल रहा है। डीएसए रक्षा मंत्रालय के इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (IDS) का हिस्सा है। एक सूत्र ने TOI को बताया, 'सैटेलाइट को जल्दी ही लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) और जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में लॉन्च करने के लिए काम चल रहा है। जिन तीन प्राइवेट कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट मिला है, उन्हें सैटेलाइट बनाने की गति बढ़ाने के लिए कहा गया है।' लो अर्थ ऑर्बिट पृथ्वी के करीब की कक्षा है, जबकि जियोस्टेशनरी ऑर्बिट पृथ्वी से बहुत दूर की कक्षा है।
2026 के अंत तक तैयार हो जाएंगे सैटेलाइट्स
भारत सरकार ने तीन प्राइवेट कंपनियों—अनंत टेक्नोलॉजीज, सेंटम इलेक्ट्रॉनिक्स और अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज को सैटेलाइट बनाने के समय को चार साल से घटाकर 12-18 महीनों में पूरा करने को कहा है। अब ये सैटेलाइट्स 2026 के अंत तक तैयार हो सकते हैं, जबकि पहले इनका प्लान 2028 का था।
अनंत टेक्नोलॉजीज जिस सैटेलाइट को बना रही है, उस सैटेलाइट के इसी साल तैयार हो जाने की संभावना है। इसे ISRO के भारी रॉकेट LVM-3 या फिर एलन मस्क की कंपनी SpaceX के जरिए लॉन्च किया जा सकता है।
3 बिलियन डॉलर की योजना
ये सारी प्रक्रिया 3 बिलियन डॉलर की Space-based Surveillance-3 (SBS-3) योजना के तहत हो रही है, जिसे अक्टूबर में कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने मंजूरी दी थी। इसके तहत कुल 52 निगरानी सैटेलाइट बनाए जा रहे हैं। इनमें से 31 प्राइवेट कंपनियां बना रही हैं और बाकी ISRO धीरे-धीरे बनाएगा।
कौन कंपनियां बना रहीं हैं ये सैटेलाइट
तीनों कंपनियां—हैदराबाद की अनंत टेक्नोलॉजीज, बेंगलुरु की सेंटम इलेक्ट्रॉनिक्स और अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज ISRO की पुरानी पार्टनर और सप्लायर रही हैं। इन्होंने पहले भी निगरानी सैटेलाइट्स और चंद्रयान-3 जैसे मिशनों में अहम भूमिका निभाई है।
अनंत टेक्नोलॉजीज़, जिसे ISRO के पूर्व साइंटिस्ट सुब्बा राव पावुलुरी लीड कर रहे हैं और सेंटम इलेक्ट्रॉनिक्स, जिसके चेयरमैन अप्पाराव मल्लवारपू हैं। इन दोनों कंपलियों ने चंद्रयान-3 में अहम कॉम्पोनेंट्स सप्लाई किए थे।
तीसरी कंपनी, अल्फा डिजाइन को अप्रैल 2019 में अदाणी डिफेंस एंड एयरोस्पेस ने पूरी तरह खरीद ली थी। ये कंपनी ISRO के लिए NavIC सैटेलाइट्स बनाने में भी शामिल रही है, जो कि भारत का खुद का GPS सिस्टम है।
प्राइवेट कंपनियां का संवेदनशील प्रोजेक्ट्स में बड़ी भूमिका
सरकारी कॉन्ट्रैक्ट्स प्राइवेट स्पेस कंपनियों के लिए बहुत अहम होते हैं। स्पेस इंडस्ट्री के एक्सपर्ट्स भी मानते हैं कि प्राइवेट कंपनियां बड़े और संवेदनशील प्रोजेक्ट्स में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के स्पेस फेलो चैतन्य गिरी ने बताया कि ये कंपनियां पहले से ही ISRO की सप्लायर हैं, इसलिए इनके लिए सैटेलाइट्स बनाना और लॉन्च करना कोई नई बात नहीं है।
भारत के रक्षा मंत्रालय की ओर से इन सैटेलाइट्स निर्माण की प्रक्रिया तेज करने का ‘सॉफ्ट ऑर्डर’ उस वक्त आया, जब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ 'ऑपरेशन सिंदूर' की शुरुआत की थी।
चीन-पाकिस्तान से हिंद महासागर क्षेत्र तक पर रहेगी नजर
सूत्र ने आगे बताया,'स्पेस-बेस्ड सर्विलांस (SBS)-3 का लक्ष्य चीन और पाकिस्तान के बड़े इलाकों के साथ-साथ हिंद महासागर क्षेत्र को भी कवर करना है। इसके लिए, सैटेलाइट कम समय में एक ही जगह की तस्वीरें ले सकेंगे और उनकी क्वालिटी भी बेहतर होगी। स्पेस डॉक्ट्रिन को भी बेहतर बनाया जा रहा है।'इसका मतलब है कि सैटेलाइट पहले से अधिक तेजी से और बेहतर तरीके से जानकारी जुटा पाएंगे। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन की ओर से पाकिस्तान की सक्रिय सपोर्ट की रिपोर्ट आ चुकी हैं। ऐसे में अंतरिक्ष में चीन की बढ़ती ताकत को अब भारत के लिए नजरअंदाज करना नाममुकिन हो चुका है।
हाई-एल्टीट्यूड प्लेटफॉर्म सिस्टम खरीदने की भी तैयारी
इसके साथ ही भारतीय वायुसेना (IAF) तीन हाई-एल्टीट्यूड प्लेटफॉर्म सिस्टम (HAPS) एयरक्राफ्ट खरीदने की तैयारी कर रही है। HAPS एक तरह के ड्रोन होते हैं, जो बहुत ऊंचाई पर उड़ते हैं और लंबे समय तक खुफिया जानकारी जुटाने, निगरानी करने और टोह लेने (ISR) का काम करते हैं। इन्हें 'स्यूडो-सैटेलाइट'(छद्म सैटेलाइट) भी कहा जाता है। एनबीटी ऑनलाइन पहले भी यह खबर दे चुका है।
देखते ही फौरन कार्रवाई करने लायक लूप बनाने पर जोर
ऑपरेशन सिंदूर (पाकिस्तान के खिलाफ 7 से 10 मई के बीच) के दौरान भारत ने कार्टोसैट जैसे घरेलू सैटेलाइट और विदेशी कमर्शियल सैटेलाइट का इस्तेमाल करके पाकिस्तानी सेना की हरकतों पर नजर रखी थी। एक और सूत्र ने कहा, 'हमें अपने ऑब्जर्व, ओरिएंट, डिसाइड एंड एक्ट (OODA) लूप को छोटा करना होगा। भारत जितनी जल्दी 52 सैटेलाइट को अंतरिक्ष में स्थापित करेगा, उतना ही बेहतर होगा।' OODA लूप का मतलब है कि किसी भी स्थिति को देखकर, समझकर, फैसला लेकर तुरंत कार्रवाई करना।
अंतरिक्ष में भी चीन की चुनौती से निपटने की तैयारी जरूरी
भारत को अपनी सैटेलाइट की सुरक्षा के लिए भी एक शील्ड भी बनानी होगी। क्योंकि, चीन डायरेक्ट एसेंट एंटी-सैटेलाइट मिसाइल, को-ऑर्बिटल सैटेलाइट, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर उपकरण और हाई-पावर्ड लेजर जैसे हथियार बना रहा है। इनका इस्तेमाल करके वह दूसरे देशों को अंतरिक्ष के इस्तेमाल को सीमित कर सकता है। चीन का मिलिट्री स्पेस प्रोग्राम 2010 में सिर्फ 36 सैटेलाइट से बढ़कर 2024 तक 1,000 से ज्यादा सैटेलाइट तक पहुंच गया था। इनमें से 360 सैटेलाइट ISR (खुफिया जानकारी जुटाने, निगरानी करने और टोह लेने) मिशन के लिए हैं।
रियल-टाइम सिचुएशनल अवेयरनेस की आवश्यकता अहम
इस महीने की शुरुआत में एक सेमिनार में आईडीएस चीफ एयर मार्शल आशुतोष दीक्षित ने भारत के 'निगरानी दायरे' को बढ़ाने की आवश्कता पर जो दिया था। उन्होंने संघर्षों में 'रियल-टाइम सिचुएशनल अवेयरनेस' की अहमियत पर जोर दिया था। रियल-टाइम सिचुएशनल अवेयरनेस का मतलब है कि किसी भी स्थिति की जानकारी तुरंत मिलना। उन्होंने कहा, 'हमें संभावित खतरों को तब पहचानना और ट्रैक करना ही काफी नहीं होगा, जब वे हमारी सीमाओं के पास आएं, बल्कि तब जब वे अपने स्टेजिंग एरिया, एयरफील्ड और बेस में ही हों।'
अंतरिक्ष में भी सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरा है चीन
पिछले साल अप्रैल में चीन ने पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (PLA) की एयरोस्पेस फोर्स बनाई थी। इससे पता चलता है कि चीन अंतरिक्ष को भी आधुनिक युद्ध का ठिकाना बनाना चाहता है। एयर मार्शल दीक्षित ने कहा, 'उनके सैटेलाइट ने हाल ही में लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में 'डॉगफाइटिंग' युद्धाभ्यास का प्रदर्शन किया है। वे ऐसी रणनीति का अभ्यास कर रहे हैं, जिससे दुश्मन की 'स्पेस प्रॉपर्टी' को ट्रैक किया जा सके और उसे निष्क्रिय किया जा सके। वे 'किल चेन' से 'किल मेश' में बदल गए हैं – एक ऐसा इंटीग्रेटेड नेटवर्क जो ISR सैटेलाइट को हथियार प्रणालियों के साथ जोड़ता है।' 'डॉगफाइटिंग' का मतलब है, जब सैटेलाइट एक-दूसरे का पीछा करते हैं, जैसे फाइटर जेट युद्ध में करते हैं। 'किल चेन' का मतलब है कि दुश्मन को मारने के लिए एक के बाद एक कार्रवाई करना। 'किल मेश' का मतलब है कि दुश्मन को मारने के लिए एक साथ कई कार्रवाई करना।
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