प्रदेश में हर एक लाख प्रसव में 159 माताएं और हर एक हजार जन्म में 40 नवजात अपनी जान गंवा रहे

भोपाल
प्रदेश में शिशु मृत्यु दर (आइएमआर) दो वर्षों में 43 से घटकर 40 प्रति हजार जीवित जन्म हो गई है। हालांकि, यह मामूली गिरावट है और प्रदेश अब भी देश में सबसे अधिक आइएमआर वाला राज्य बना हुआ है। गांव में स्थिति ज्यादा खराब है, जहां आइएमआर 43 है, जबकि शहरों में यह घटकर 28 रह गई है। बिहार, महाराष्ट्र में इस दर में तेज गिरावट आई है। इन राज्यों ने कुशल प्रसव और अच्छी पोषण नीति के जरिए सुधार किया है। इसका खुलासा रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया द्वारा जारी एसआरएस बुलेटिन 2022 में हुआ।
IMR 2013 में 53 और 2022 में 40 भारत सरकार के रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय द्वारा हाल में जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) की 2022 रिपोर्ट के अनुसार, मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर (IMR) 40 दर्ज की गई है। वहीं, देश की IMR 26 है। पिछले दशक के रुझानों पर गौर करें तो, 2013 में भारत का IMR 40 था जो 2022 तक घटकर 26 हो गया। यानी, भारत ने 35% की कमी आई। वहीं, मध्यप्रदेश का IMR 2013 में लगभग 53 था और 2022 में 40 पर आया। इससे साफ है कि मध्यप्रदेश की प्रगति धीमी और पिछड़ी हुई है।
हाल ही में राजधानी में हुए एक कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने इस विषय पर डॉक्टरों और विभाग के अधिकारियों को इन आंकड़ों को गंभीरता से लेने के लिए कहा था। उन्होंने कहा कि आंकड़ों में सुधार आया है, यह अच्छी बात है। लेकिन, अभी लक्ष्य बहुत दूर है। इसके लिए सभी हर संभव प्रयास करें।
मध्य प्रदेश में कुल मेल शिशु मृत्यु दर (IMR) 39 है, जबकि फीमेल शिशु मृत्यु दर (IMR) 40 है। इसका अर्थ है कि प्रति एक हजार जीवित जन्मों पर लड़कों की तुलना में एक अधिक लड़की की मृत्यु हो रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में मेल शिशु मृत्यु दर 42 और फीमेल शिशु मृत्यु दर 44 है। वहीं, शहर में मेल शिशु मृत्यु दर 28 और फीमेल शिशु मृत्यु दर 27 है।
देश, राज्य और वैश्विक स्तर पर IMR की तुलना
- उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ का IMR भी 38 है, जो मध्यप्रदेश से थोड़ा बेहतर, लेकिन फिर भी गंभीर स्थिति में है।
- ओडिशा का IMR 32 है, जो उच्च IMR वाले राज्यों में से एक है।
- केरल 7 और तमिलनाडु 11 IMR के साथ शिशुओं की देखभाल में बेहतर स्थिति पर हैं।
- वैश्विक स्तर पर तुलना करने पर, मध्यप्रदेश का IMR 40 है। वहीं, बांग्लादेश में 25 है। यानी बांग्लादेश भी हम से आगे।
- दक्षिण एशियाई देशों में केवल पाकिस्तान (IMR 55) को छोड़कर, पिछड़े हुए हैं।
देश का MMR औसत आधा इधर, SRS मैटरनल बुलेटिन 2020-22 के अनुसार, मध्यप्रदेश में मातृ मृत्यु दर (MMR) 159 है। जबकि भारत का औसत MMR 88 है। मध्यप्रदेश का IMR-MMR देश के औसत से लगभग दोगुना है। जो इसे सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य बनाता है।
देश और राज्यों से MMR की तुलना
- उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ का MMR भी 141 है, जो मध्यप्रदेश से थोड़ा बेहतर, लेकिन फिर भी गंभीर स्थिति में है।
- ओडिशा का MMR 136 है, जो उच्च MMR वाले राज्यों में से एक है।
- वहीं, केरल 18 और महाराष्ट्र 36 MMR के साथ मातृ देखभाल में बेहतर मॉडल प्रस्तुत करते हैं।
सरकार हर मौत की तय कर रही जबावदेही वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ और MDSR मेंबर डॉ. प्रिया भावे चित्तावर ने बताया कि सरकार और NHM (नेशनल हेल्थ मिशन) बीते कुछ सालों से MDSR यानी मेटर्नल डेथ स्टेट रिव्यू सिस्टम बनाया है। इसकी समय-समय में बैठक आयोजित की जाती है। जिसमें विभाग के वरिष्ठ अधिकारी, चयनित सरकारी और निजी अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ, सीएमएचओ से लेकर आशा कार्यकर्ता तक जुड़ती हैं।
इसमें हर मौत पर चर्चा होती है। यह पता करने पर फोकस रहता है कि गर्भवती की मौत के पीछे का कारण क्या था और इसे सुधारने के लिए क्या कदम उठाए जाएं। यह पूरी मीटिंग को ऑन रिकॉर्ड रहती है। जिससे पुरानी गलती यदि दोबारा सामने आए तो संबंधित के विरुद्ध कार्रवाई हो। सरकार इस विषय को लेकर बेहद गंभीर है।
ये प्रयास हुए, वो भी नाकाफी साबित रहे
● शिशुओं की देखभाल के लिए त्रिस्तरीय प्रणाली पर काम।
● 62 सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट (एनएनसीयू) क्रियाशील।
● 199 न्यूबोर्न स्टेबिलाइजिंग यूनिट (एनबीएसयू)।
● प्रसव केंद्रों पर न्यूबोर्न केयर कॉर्नर और जिला अस्पतालों में पीआइसीयू बनी।
● शिशु स्वास्थ्य संस्थानों में मुस्कान कार्यक्रम चला।
बिहार-महाराष्ट्र ने ऐसे कम किया आइएमआर
बिहार, महाराष्ट्र आदि राज्यों ने जन्म के समय कुशल प्रसव, अच्छी प्रसवोत्तर देखभाल, स्तनपान और पर्याप्त पोषण, टीकाकरण और सामान्य बाल्यावस्था रोगों के उपचार जैसे बुनियादी जीवनरक्षक उपायों तक आसान पहुंच सुनिश्चित कर अपने यहां आइएमआर घटाई है। खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाओं के विस्तार पर ध्यान दिया गया।
गांव में अब भी ये सुधार जरूरी
– उप स्वास्थ्य केन्द्रों पर हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर बना कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर की नियुक्ति हो।
– हर जिले में कम से कम 5 सीएचसी को फर्स्ट रेफरल यूनिट बनाया जाना चाहिए।
– गायनिक और शिशु रोग विशेषज्ञों की नियुक्ति नहीं हो पाने के कारण अभी एफआरयू नहीं बन पाई हैं।
– प्रदेश में एसएनसीयू और एनबीएसयू की संख्या भी बढ़ाने की जरूरत है।
डॉ. चित्तावर के अनुसार, गर्भवती और परिवार इन बातों का रखें ध्यान
गर्भावस्था के 7वें – 8वें माह में महिलाओं को बाहर नहीं निकलने दिया जाता है। जबकि, इस समय में नियमित जांच सबसे जरूरी होती है।
यह मानना कि गर्भावस्था एक आम स्थिति है। जब दर्द हो सिर्फ तभी अस्पताल जाना है। यह पूरी तरह से गलत है।
हाई रिस्क फैक्टर की समय से पहचान जरूरी है। इसमें हाई बीपी, शुगर, एनीमिया जैसी स्थिति शामिल हैं। इसके लिए जरूरी है कि गर्भवती महिला की नियमित जांच कराई जाए।
खान पान का विशेष ध्यान रखें। पसंद और ना पंसद को छोड़ महिलाएं पोषण पर विशेष ध्यान दें। हरी सब्जी, दाल, मिलेट्स और दूध का सेवन जरूर करना है। इनमें आयरन की मात्रा अच्छी होती है, जिससे खून की कमी नहीं होती है।
नवजात को इन्फेक्शन से बचाना सबसे जरूरी शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. भूपेंद्र कुमार गुप्ता ने बताया कि छोटे बच्चों की देखभाल के लिए कुछ बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिए। इसमें बच्चे को सही समय पर फीडिंग कराना जरूरी है। उसे इन्फेक्शन से बचाने के लिए साफ सफाई पर विशेष ध्यान देना है। उसके शरीर का तापमान सही रखना है। अधिक गर्म या ठंडे पानी से नहीं नहलाना है। कोई भी गुट्ठी, मधुरस जैसी चीजें बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं पिलाना है।
क्या है जरूरी हस्तक्षेप
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का मजबूतीकरण।
प्रसव पूर्व और पश्चात देखरेख में सुधार।
पोषण, टीकाकरण और मातृ स्वास्थ्य सेवाओं की सतत निगरानी।
ग्रामीण क्षेत्रों में आशा कार्यकर्ताओं को अधिक संसाधन।
जनजागरूकता अभियानों को गांव स्तर तक पहुंचा।
स्वास्थ्य एवं लोक चिकित्सा विभाग उठा रहा यह कदम
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षित डॉक्टरों की संख्या बढ़ाना।
सभी महिलाओं के लिए अनिवार्य ANC विजिट सुनिश्चित करना।
समय पर रेफरल और एम्बुलेंस सेवाओं को और मजबूत करना।
ब्लॉक स्तर पर समर्पित मातृ स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना।
स्वास्थ्य कर्मियों के प्रशिक्षण और ट्रैकिंग सिस्टम को पारदर्शी बनाना।
(स्वास्थ्य विभाग के सेवानिवृत्त संचालक डॉ. पंकज शुक्ला के अनुसार।)
स्रोत- एसआरएस बुलेटिन 2022, आंकड़े प्रति हजार जीवित जन्म में।